लोकपर्व इगास-बग्वाल, बूढ़ी दिवाली पर महाराज ने दी शुभकामनायें, जानिए क्या है इगास-बग्वाल मनाने के पीछे की मान्यता

लोकपर्व इगास-बग्वाल, बूढ़ी दिवाली पर महाराज ने दी शुभकामनायें, जानिए क्या है इगास-बग्वाल मनाने के पीछे की मान्यता

देहरादून। प्रदेश के पर्यटन, लोक निर्माण, पंचायतीराज, ग्रामीण निर्माण, सिंचाई, जलागम, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक लोक पर्व इगास-बग्वाल पर्व बूढ़ी दिवाली पर शुभकामनायें देते हुए प्रदेशवासियों को अपनी संस्कृति से जुड़ने के साथ-साथ उत्साह व उमंग के साथ मनाने का अनुरोध किया है।

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि गढ़वाल में दीपावली त्योहार के 11 दिन के पश्चात बग्वाल, इगास मनाने की प्राचीन परंपरा है। प्रदेश सरकार ने इस लोक पर्व की महत्ता एवं पौराणिकता को देखते हुए ही इस बार बग्वाल, इगास पर (4 नवम्बर, 2022) को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।

महाराज ने कहा कि पहाड़ की लोकसंस्कृति से जुड़े इगास, बगवाल पर्व के दिन घरों की साफ-सफाई के बाद मीठे पकवान बनाए जाते हैं और देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। कार्तिक मास में इगास, बगवाल पर्व पर शाम के समय गांव के किसी खाली खेत अथवा खलिहान में नृत्य के साथ भैलो खेला जाता है। भैलो एक प्रकार की मशाल होती है, जिसे नृत्य के दौरान घुमाया जाता है।

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे, तो लोगों ने अपने घरों में दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने की सूचना गढ़वाल मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों में दीपावली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को पहुंची। तभी से यहां दीपावली के 11 दिन बाद बूढ़ी दिवाली इगास (बगवाल) मनाई जाती है। उन्होने कहा कि इगास, बगवाल पर्व को लेकर मान्यता है कि 17 वीं शताब्दी में गढ़वाल के प्रसिद्ध भड़ (योद्धा) वीर माधो सिंह भंडारी की सेना दुश्मनों को परास्त कर दीपावली के 11 दिन बाद जब वापस लौटी तो स्थानीय लोगों ने दीये जलाकर सैनिकों का स्वागत किया। तभी से गढ़वाल में यह लोकपर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा।

Samachaar India

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *