पेड़ों के बिना बेमानी है वन्यजीव संरक्षण का दावा

पेड़ों के बिना बेमानी है वन्यजीव संरक्षण का दावा

 सुमित परासर
हमारी सरकार देश में राष्ट्रीय पशु बाघ की संख्या में बढ़ोतरी का दावा करते नहीं थकती। देश में एक समय विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके बाघों की तादाद में बढ़ोतरी वास्तव में प्रशंसा का विषय तो है ही, गर्व का विषय भी है। इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है। हाल ही में जारी केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट जिसमें देश में तेंदुओं की तादाद में बढ़ोतरी का दावा किया गया है, और कहा गया है कि यह देश में जैव विविधता के प्रति भारत के अटूट समर्पण का प्रमाण भी है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में अब तेंदुओं की संख्या बढ़कर 13,874 के करीब हो गई है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। सरकार के इस प्रयास की सराहना की जानी चाहिए। साथ ही सरकार की उस घोषणा का भी स्वागत किया जाना चाहिए, जिसके तहत सरकार ने वन्यजीवों की सात प्रजातियों यथा बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ,प्यूमा,जगुआर और चीता के संरक्षण के लिए इंटरनेशनल बिग कैट एलाइंस बनाया है जिसकी सफलता उसी दशा में संभव है जबकि देश दुनिया में वन्य जीवों के लिए न केवल उनके अनुकूल वातावरण हो, और साथ ही उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी न हो।

इस सबके लिए बेहतर प्रबंधन होना बहुत जरूरी है जिसके बिना ये सारी कवायद बेमानी होगी। यहां इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि वन्य जीव और वन्य जीवन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन असलियत यह है कि जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी,अनियंत्रित औद्यौगिक विकास और शहरीकरण के कारण जहां जंगलों की तेजी से हो रही बेतहाशा कटाई जिसके चलते जहां वन्यजीवों के आवास लगातार खत्म किए जा रहे हैं, वहीं वन्य जीवों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही वह अहम कारण है कि वन्यजीव भोजन की खातिर अब मानव बस्तियों की ओर रुख करने लगे हैं। इसका दुष्परिणाम वन्य जीव-मानव संघर्ष के रूप में सामने आया है। इसका एकमात्र समाधान, वह है जंगलों की बेतहाशा कटाई पर रोक जो इस दिशा में सबसे अहम है। क्योंकि इसके बिना सारी कवायद बेमानी होगी। इस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि यह संकट मात्र कुछेक वन्य जीवों का ही सवाल नहीं है, बल्कि यह तो दूसरी प्रजातियों के अस्तित्व से भी जुड़ा है। क्योंकि उस दशा में उन दूसरी प्रजातियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में पारिस्थितिकी संतुलन का बिगाड़ अवश्यंभावी है।

बीते कुछ महीनों से पेड़ और जंगलों की अवैध कटाई का मसला विशेष रूप से चर्चा में है। खास बात यह कि इस मसले पर देश की सुप्रीम अदालत काफी गंभीर है और उसने इस महत्वपूर्ण सवाल पर संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। इसके लिए सुप्रीम अदालत की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। अभी आगरा में पेड़ कटाई का प्रकरण ठंडा भी नहीं पड़ा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कार्बेट रिजर्व नेशनल पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई को अनुमति देने के लिए उत्तराखंड सरकार के पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी किशन चंद्र की जमकर न केवल खिंचाई की, बल्कि उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए यह टिप्पणी की कि यह एक ऐसा मामला है जो दिखाता है कि राजनेताओं और नौकरशाही ने लोगों के भरोसे को कूडेÞदान में डाल दिया है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि तत्कालीन वन मंत्री हरक सिंह रावत व प्रभागीय वन अधिकारी किशन चंद्र ने कानून की घोर अवहेलना की है। ये लोग व्यावसायिक उद्देश्यों और पर्यटन को बढ़ावा देने के बहाने इमारतें बनाने को बडेÞ पैमाने पर पेड़ों की अवैध कटाई में शामिल रहे हैं। चूंकि सीबीआई इस प्रकरण की पहले से ही जांच कर रही है, इसलिए सीबीआई तीन महीने में इस मामले की जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करे। पीठ ने इस बाबत यह भी कहा कि सीबीआई जांच से केवल उन दोषियों का पता लगाया जा सकेगा, जो कार्बेट नेशनल पार्क में इतने बडेÞ पैमाने पर नुकसान के लिए जिम्मेवार हैं। पीठ ने इस बात पर जोर देकर कहा कि कानून अपना काम करेगा।

पीठ का मानना है कि राज्य जंगल को हुए नुकसान की भरपाई करने की अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकता। इसलिए राज्य सरकार को भविष्य में ऐसे कारनामों को रोकने के अलावा पहले ही हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट न आगे कहा कि यह तो सभी भलीभांति परिचित हैं ही कि जंगल में बाघ की उपस्थिति पारिस्थितिक तंत्र की भलाई का सूचक है। कार्बेट नेशनल पार्क में बडेÞ पैमाने पर अवैध पेड़ों की कटाई व अवैध निर्माण जैसी घटनाएं नजर अंदाज नहीं की जा सकती। इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाया जाना समय की मांग तो है ही, राज्य सरकार को इससे हुई क्षति का मूल्यांकन निर्धारित करने और इसमें सुधार करने की खातिर इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों से राज्य सरकार हर्जाना वसूले और हर्जाने की राशि का इस्तेमाल सिर्फ  जंगल को हुए नुकसान की भरपाई व उसे सही करने पर खर्च करे।

Samachaar India

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *